"स्वच्छता आजादी से महत्वपूर्ण है"
महात्मा गांधी
"स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास" यूनान के
प्रसिद्ध दार्शनिक 'थेल्स' का कथन है, उनके अनुसार स्वस्थ शरीर में
ही स्वस्थ मन और दिमाग का वास होता है। विख्यात यूनानी दार्शानिक अरस्तू
कहतें है कि शिक्षा, स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निर्माण करती है। यह व्यक्ति
की क्षमता और सामर्थ्य को बढ़ाती है। विशेषकर मानसिक क्षमता को जिससे वह परम सत्य,
अच्छाई और सौंदर्य का आनंद लेने योग्य हो सके।"
लम्बी और खुशहाल ज़िन्दगी का ख्वाहिशमंद प्रत्येक मनुष्य होता है। यह आशा सिर्फ
इसलिए ही आशा बन के रह जाती है क्योकिं मनुष्य अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए
सिर्फ रूपये-पैसे और भौतिक चीजों को तरजीह देता है जबकि सदियों पहले भी यह कहा जा
चूका है कि 'तंदुरुस्ती हजार नियामत' और 'जान है तो जहान
है'। क्या आप अपने
स्वास्थ्य को ताक पर रखकर लंबी उम्र जी सकते हैं? यह स्वास्थ्य, स्वच्छता पर काफी हद्द तक
निर्भर है। एक अध्ययन के मुताबिक विकासशील देशों में होने वाली 90 प्रतिशत
बीमारियां और एक तिहाई मौतों के लिए गन्दगी तथा प्रदूषित जल ही जिम्मेदार है। विश्व
स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष करीब 6 करोड़ लोग अकेले
डायरिया से पीडि़त होते हैं, जिनमें से 40 लाख बच्चों की मौत हो जाती है।
वर्ष 2001 में, भारत में डायरिया से होने वालें मौतों की संख्या 25 लाख थी जोकि
वर्ष 2012 में घटकर 15 लाख हो गयी थी। डायरिया और मौत की वजह अस्वच्छ और प्रदूषित
जल ही है। गन्दगी से पनपी बिमारियों में डायरिया सिर्फ एक घटक है। प्रत्येक वर्ष करीब 4
लाख बच्चे हैज़ा और पेचिश के कारण मौत के मुंह में समां जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य
संगठन के आंकड़ें बताते हैं की विश्व में 61 प्रतिशत लोगो के पास सुरक्षित या
उपयुक्त सैनिटेशन सेवा उपलब्ध नहीं है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण
2015-16 (एनएफएचएस-4) के अनुसार भारत में अभी 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगो के पास
बेहतर सैनिटेशन सुविधा उपलब्ध नहीं है। एनएफएचएस-4 के अनुसार भारत में 10 में से 6
परिवार अस्वच्छ और प्रदूषित पानी पीता है। एनएफएचएस-4 के अनुसार भारत में 62%
महिलायें अभी ऐसें कपड़ो का उपयोग कर रही है जो उन्हें मूत्र और प्रजनन पथ संक्रमण संबंधी
(urinary and reproductive tract infections) स्वास्थ्य मुद्दों के प्रति संवेदनशील बना
देती है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं में मूत्र और प्रजनन पथ संक्रमण की स्थिति
भयावह है।
कुल जनित तरल अपशिष्ट और सीवेज तरल अपशिष्ट का केवल 30 प्रतिशत ही
नदियों में जाने से पहले स्वच्छ किया जाता है, मतलब करीब 70 प्रतिशत तरल अपशिष्ट
और सीवेज तरल अपशिष्ट पदार्थ को बिना शुद्द कियें ही नदियों में मिला दिया जाता
है। गंदगी के कारण नाना प्रकार की बीमारियां फैल रही हैं। बच्चों में एनीमिया की
बीमारी का बड़ा कारण भी गंदगी है। जिसकी वजह से बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास
प्रभावित होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि गंदगी को नियंत्रित कर लिया जाए
तो कई प्रकार की बीमारियों को दूर किया जा सकता है। वर्तमान में मच्छरों से होने
वाली बीमारी डेंगू व मलेरिया ज्यादा जानलेवा और खर्चीले साबित हो रहे हैं। डेंगू
से प्रत्येक वर्ष हजारो लोग प्रभावित होते हैं। इसका मुख्य कारण साफ-सफाई की कमी
है। मलेरिया के मच्छर गंदगी के कारण पनपते हैं। इसके अलावा गंदगी की वजह से हैजा, कालरा, निमोनिया, पीलिया, मोतीझरा
(टायफाइड), हेपेटाइटिस आदि बीमारियां होती हैं जिससे प्रत्येक वर्ष मुख्यतः
विकासशील राष्ट्रों में लाखोँ जानें जाती है। रोहें या ट्रकोमा, कन्जक्टिवाईटिस
(आँखे आना), चमड़ी (त्वचा) रोग, आँत के कीड़े (कृमि) और अन्य कई प्रकार की
बीमारियाँ के लिए हमारे आस-पास की गंदगीयुक्त पर्यावरण जिम्मेदार है और चिंता की
बात यह है कि यह गंदगीयुक्त पर्यावरण मानवजनित है। यूनीसेफ के अनुसार, “भारत में शौच के बाद या
बच्चों की सफाई के बाद मां का हाथ धोने का प्रतिशत बहुत ही कम है, जबकि साबुन से हाथ धोने पर डायरिया होने की
संभावना बहुत ही कम हो जाती है। डायरिया की रोकथाम के लिए सबसे जरुरी है - साबुन
से हाथ साफ़ करना। साबुन से हाथ धोने पर डायरिया होने की संभावना 44 फीसदी कम हो
जाती है। साबुन से हाथ धोने से पानी से होने वाली विभिन्न बीमारियों से बचा जा
सकता है और यह बहुत खर्चीला भी नहीं है। इसे सभी वर्ग, जाति, समुदाय और सभी
क्षेत्र के लोग अपना सकते हैं और उपयोग कर सकते हैं, बशर्ते कि उनमें इसे लेकर पर्याप्त जागरूकता हो।” प्रत्येक व्यक्ति के रचनात्मक कार्यों में लगने
वाले समय का लगभग दसवां हिस्सा गन्दगीजनित रोगों की भेंट चढ़ जाता है, जो देश की
खुशहाली और अर्थव्यवस्था के लिए कदापि उचित नहीं है।
सामान्यतः स्वच्छता दो प्रकार की होती है, पहली शारीरिक स्वच्छता और दूसरी आन्तरिक
स्वच्छता। शारीरिक स्वच्छता हमें बाहर से साफ रखती है और हमें कई प्रकार की
बिमारियों से दूर रखती है साथ ही आत्मविश्वास के साथ अच्छा होने का अनुभव कराती
है। वहीँ, आन्तरिक
स्वच्छता हमें मानसिक शान्ति प्रदान करती है और चिंताओं से दूर करती है। आन्तरिक
स्वच्छता से अभिप्राय मस्तिष्क में गंदी, बुरी, गलत, और नकारात्मक सोच के ना या बिलकुल कम होने से है।
नकारात्मक और बुरे विचारो का हमारे मन-मस्तिक पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। राष्ट्रपिता
महात्मा गाँधी के अनुसार ‘‘शिक्षा में मन और शरीर की सफाई ही शिक्षा पहला कदम है।
आप के आसपास की जगह की सफाई जिस प्रकार झाड़ू और बाल्टी की मदद से होती है,
उसी प्रकार मन की शुद्धि प्रार्थना से होती है। इसलिए हम अपने काम
की शुरूआत प्रार्थना से करते हैं।’’ गाँधी जी कहते हैं
कि ‘‘यदि शरीर को ईश्वर की सेवा का साधन मानते हुए हम शरीर को पोषण देने के लिए
ही भोजन करें, तो इससे हमारे मन और शरीर ही स्वच्छ और
स्वस्थ नहीं होंगे, बल्कि हमारी आंतरिक स्वच्छता हमारे चारों
ओर के वातावरण में भी झलकेगी। हमें अपने शौचालयों को रसोईघर जैसा स्वच्छ रखना
चाहिए। शरीर, ह्रदय, मन, और मस्तिष्क को स्वच्छ
और शान्तिपूर्ण रखना ही पूर्ण स्वच्छता है। हमें अपने चारों तरफ के माहौल को साफ
रखने की आवश्यकता है ताकि हम साफ और स्वस्थ्य वातावरण और पर्यावरण में रह सकें।
आज हमारें लगभग सारे शहर कूड़ेदान में तब्दील हो गयें हैं और लगभग प्रत्येक शहर
के हर कोने में कचरे का अम्बार या पहाड़ दिखता है जोकि बीमारी की खान है लेकिन कुछ
ऐसा ही हाल 19वी सदी में यूरोप के शहर लन्दन का था लेकिन लन्दन आज दुनिया के सबसे
खुबसूरत शहरों में शुमार है। लन्दन ने जो किया वह हम भी कर सकतें है और अपनें
शहरों की भी सौंदर्यीकरण कर सकतें है, हमारें पास किसी भी रिसोर्स की कमी नहीं है
सिर्फ जरुरत है इच्छा शक्ति की विशेषरूप से राजनितिक इच्छा-शक्ति की। स्वच्छता ना
केवल लोगों को लुभाती है बल्क़ि वह लोगों को स्वस्थ और खुशहाल भी रखती है।
स्वच्छता अपनी ओर सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है और मनुष्यों को अपनी ओर
प्रभावित करती है। किसी भी देश में स्वच्छता को बनाये रखने में उस देश में शिक्षा के स्तर, गरीबी, जनसंख्या आदि
कारक जिम्मेदार होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारक शिक्षा है क्योंकि बेहतर शिक्षा
गरीबी के स्तर को कम करने में सहायक होती है और बढ़ती हुई जनसंख्या को अप्रत्यक्ष
रूप से नियत्रित करती है। यदि देश का नागरिक शिक्षित होगा तो वह पूरे देश और विश्व
में स्वच्छता को बनाये रखेगा और इसके लिए लोगों को भी प्रेरित करेगा। सामान्यतः वह
अगली पीढ़ी में अपनी इन अच्छी आदतों को भी हस्तान्तरित करता है। प्राचीन समय से
ही, स्वास्थ्य को सर्वोच्च धन माना गया है। किसी भी रोग से ग्रसित व्यक्ति धन एवं
सुख-सुविधाओं का उचित उपभोग नहीं कर सकता। बीमार व्यक्ति को अपना जीवन भार जैसे
लगने लगता है। स्वस्थ व्यक्ति बहुत मस्ती में जीता है। उसके मन-मस्तिष्क में
उत्साह, उमंग और प्रसन्नता बनीं रहती है। वह किसी भी कार्य को पूरे उत्साह से करता
है। किसी ने सही कहा है कि बीमार धनी होने की अपेक्षा स्वस्थ गरीब होना अधिक अच्छा
है क्योकिं स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है। शरीर के द्वारा ही सभी कार्य संपन्न किए जातें
हैं और हम अपनी जिम्मेदारियों को भी भली-भाँति निभा पातें हैं, यह सब तभी संभव है
जब हम पूर्णरूप से स्वस्थ हो।
उपर्युक्त बीमारियाँ सामान्यतः गन्दगी की वजह से होती है। अपने आस-पास के
वातावरण एवं पानी को दूषितं रखने की वजह से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पनपती हैं।
प्राचीन काल से ही भारत ने स्वच्छता को प्राथमिकता दी है। सिन्धु घाटी सभ्यता और
हड्डपा के उत्खनन से यह बात स्पष्ट है की उस समय के लोग स्वच्छता को लेकर जागरूक
थे और वे लोग भूमिगत जल निकासी प्रणालियों के माध्यम से तरल अपशिष्ट प्रबंधन करतें
थे। कालांतर में यह सफाई व्यवस्था मौर्य वंश, गुप्त वंश, और विजयनगर राज्य में
जारी रही। भारत में सफाई अभियन्त्रिकी (Sanitary Engineering) आज से 5000 वर्ष पूर्व एक विकसित स्थिति
में थी। बहुत से सामाज सुधारकों ने स्वच्छता को प्रसारित किया, पतंजलि से लेकर
स्वामी विवेकानंद और महात्मा गाँधी ने स्वच्छता के लिए समाज को प्रेरित किया और इस
बात पर जोर दिया कि स्वच्छता, भारत की सांस्कृतिक नींव का अभिन्न अंग है। गांधी जी
कहतें थे कि साफ-सफाई, ईश्वर भक्ति के बराबर है और इसलिए उन्होंने
लोगों को स्वच्छता बनाए रखने संबंधी शिक्षा दी थी और देश को एक उत्कृष्ट संदेश
दिया था। उनका कहना था कि उन्होंने 'स्वच्छ भारत' का सपना
देखा था जिसके लिए उनका अरमान था कि भारत के सभी नागरिक एकसाथ मिलकर देश को स्वच्छ
बनाने के लिए सतत कार्य करेंगे और देश को फिर से स्वच्छ बनायेंगे। स्वच्छता को
लेकर थोड़ी चिंता अंग्रेजो के शासनकाल में देखने को मिलती है।
भारत में सरकार द्वारा बहुत से स्वच्छता अभियानों को चलाया जा रहा है हालांकि, निरक्षरता,
क्रियान्वयन जागरूकता में कमी होने से कुछ विशेष सफलता नहीं मिल पायी। आधुनिक भारत
में पहली बार शहर को साफ़ रखने के लिए कोई संस्था वर्ष 1898 में स्थापित की गयी थी
जिसका नाम था बॉम्बे सिटी इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट। यह ट्रस्ट वर्ष 1896 के
मुंबई प्लेग महामारी से निपटने के लिए बनाई गयी थी। इस ट्रस्ट को मुख्यतः अंग्रेजी
सिपाहीयों के सेहत को ठीक करने के लिए गठित किया गया था। स्वतंत्र भारत में पहली
बार वर्ष 1954 ग्रामीण स्वच्छता
कार्यक्रम लाया गया जोकि पहली पंच वर्षीय
योजना का एक अंग था। वर्ष 1981 की जनगणना ने बताया कि ग्रामीण स्वच्छता कवरेज
केवल 1% थी। पेयजल और स्वच्छता के लिए अंतर्राष्ट्रीय दशक 1981-1990 के दौरान,
ग्रामीण स्वच्छता पर जोर दिया गया और फलस्वरूप वर्ष 1986 में केन्द्रीय
ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम बुनियादी तौर पर चलाया गया था, जिसका प्रमुख
उद्देश्य ग्रामीण जनता के जीवन स्तर को सुधारना तथा महिलाओं को गोपनीयता और आदर
प्रदान करना था।
वर्ष 1999 में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान शुरू किया जोकि मांग आधारित (Demand Driven) मॉडल पर काम करता
था। इस अभियान के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों लोगों को जहां
स्वच्छता के संदेश के जरिए जागरूक किया गया है। इस अभियान को सफलतापूर्वक
प्रोत्साहित किया गया है कि जन-सामान्य अपने घरों में शौचालय
का निर्माण कराएं और वंचित समूहों को इसके लिए वित्तीय प्रोत्साहन भी दिए गए हैं। इसके
कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए भारत सरकार ने ग्रामों, पंचायतों, ब्लॉकों, जिलों और
राज्यों को पूरी तरह से स्वच्छ तथा खुले में शौच मुक्त करने के लिए अक्तूबर, 2003 में
“निर्मल ग्राम पुरस्कार” नामक एक प्रोत्साहन आधारित पुरस्कार योजना शुरु की।
निर्मल ग्राम पुरस्कार वर्ष 2011 तक प्रदान किये जाते रहें हैं। "निर्मल
भारत अभियान", सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के उत्तराधिकारी कार्यक्रम के
तौर पर 1 अप्रैल 2012 से शुरू किया गया था। जिसका उद्देश्य खुले स्थान पर मल त्याग
की पारंपरिक प्रथा को पूर्ण रूप से समाप्त करना है। इस अभियान के अंतर्गत ठोस और
तरल अपशिष्ट का प्रभावी प्रबंधन इस प्रकार करना कि गांव और समुदाय का परिवेश हर
समय स्वच्छ बना रहे। यद्यपि, स्वच्छता भारत की सांस्कृतिक नींव का अभिन्न अंग है
फिर भी 48 प्रतिशत देश की जनसँख्या खुले में शौच करती है इसकी वजह से तमाम तरह की
बीमारियाँ फैलती हैं। खुले में शौच के कारण होने के कारण महिलाओं के खिलाफ मामलों
में 70 प्रतिशत अपराध होते हैं। विश्व बैंक के अध्ययन के अनुसार अपर्याप्त स्वच्छता
की वजह से भारत को करीब 53.8 बिलियन डॉलर का नुकसान प्रत्येक वर्ष होता है। यह
आंकड़ा प्राकलन वर्ष 2006 के लिए है। विश्लेषण करने पर यह पाता चलता है कि ये सारे
प्रोग्राम इस वजह से प्रभावशाली सिद्ध नहीं हुए क्योकिं योजना/अभियान का
क्रियान्वयन पूर्णरूप से सरकार के हाथ में था; यह बुनियादी ढ़ाचा केन्द्रित था;
सप्लाई तथा सब्सिडी आधारित था।
उपर्युक्त सभी चुनौतियों को नज़र में रखकर 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन
की नींव रखी गयी। इस मिशन का उदेश्य है कि सर्वव्यापी स्वच्छता कवरेज को वर्ष 2019
तक प्राप्त करने के लिए संकल्पित है। वर्ष 2019 में पुरे भारत को खुले में शौच से
मुक्त करके स्वच्छ भारत को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि देने के लिए
प्रस्तावित है, उसी वर्ष गाँधी जी की 150वी जयंती है। इस मिशन के अंतर्गत अभी तक 657.56 लाख शौचालयों
का निर्माण किया जा चुका है और 3,38,434 गांवो को खुले में शौच से मुक्त कर दिया गया है। सम्भावना है कि यह
निर्धारित लक्ष्य प्राप्त हो जायेगा लेकिन लोगों में व्यावहारिक परिवर्तन लाना अभी
भी एक चुनौती है। भारत सरकार के अन्य कार्यक्रम जैसे प्रजनन और बाल स्वास्थ्य
कार्यक्रम (Reproductive and Child Health Programme) जो
वर्ष 1997 में शुरू किया गया था; मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन – राष्ट्रिय
दिशानिर्देश 2015 (Menstrual Hygiene Management –
national guidelines 2015) और अन्य
कार्यक्रम भारत की स्वच्छता की ओर लक्षित है।
स्वच्छता और स्वास्थ दोनों हाथ में हाथ मिलाकर चलतें हैं। स्वस्थ शरीर के लिए
स्वच्छ रहना अनिवार्य है। बचाव उपचार से बेहतर है। यदि हम ठीक से भोजन करें और अपनी, अपने घर की, अपने मोहल्ले की
और अपने गाँव की सफाई का उचित ध्यान रखें तो बहुत से रोगों से बचा जा सकता है। सामान्यतः
स्वच्छता के लिए प्रत्येक मनुष्य को निम्न बातो पर ध्यान देना चाहिए: (क) पीने के लिए स्वच्छ जल प्रयोग करें; (ख) शौच के उपरान्त हाथों
को साबुनपानी से अवश्य धोएँ। यदि साबुन उपलब्ध न हो तो ताजी राख या साफ रेत का
प्रयोग करें; (ग) बर्तनों को हमेशा साफ पानी से धोएँ; (घ) बर्तनों को धोने के लिए
हमेशा साबुन, ताजी राख या साफ रेत का प्रयोग
करें; (ड.)कभी भी मिट्टी से बर्तन व हाथ न धोएँ; (च) हमेशा खाना बनाने व खाने से
पहले हाथों को साबुन से धोएँ; (छ) कच्ची सब्जी व फलों को अच्छी तरह से स्वच्छ पानी
से धोएँ; (ज) खाना बनाने व पीने के पानी को हमेशा ढककर रखें; (झ) खाने को मक्खियों
से बचाएँ; (ञ) बाजार की खुली चीजें खरीद कर न खाएँ; (ट) हमेशा शौचालय का प्रयोग करें; (ठ) यदि शौचालय नहीं है तो मल
त्यागने के बाद उसे मिट्टी से ढक दें; (ड) शौचालय को पानी के स्रोत से कम से कम 20 मीटर की दूरी पर बनाएँ; (ढ) खुले में मल न त्यागें या ताजे मल को खाद के रूप में खेतों में
न प्रयोग करें; (ण) मल को छः से
बारह महीने तक कम्पोस्ट करने के बाद ही प्रयोग करें; (त) खेत में हमेशा जूता या चप्पल पहनकर जाएँ; (थ) माँस मछली हमेशा ठीक से पकाकर खाएँ; (द)
रोज स्वच्छ पानी से नहाएँ। गन्दे व प्रदूषित तालाब के पानी से नहाने से चमड़ी का संक्रमण
हो सकता है; (ध) शौच के लिए स्वच्छ जल का प्रयोग करें। गड्ढे या तालाब के गन्दे
पानी का प्रयोग ना करें, जिससे संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती
है; (न) दूसरों का
तौलिया, कपड़ा या बिस्तर का प्रयोग ना करें; (प) कपड़े साफ पानी से
धोकर धूप में सुखाएँ; (फ) मक्खियों को पनपने से रोकने के लिए पर्यावरण को प्रदूषित
होने से बचाएँ; (ब) चेहरे पर
मक्खियाँ न बैठने दें; (भ) रोज स्नान करते समय अपना चेहरा और आँख भी स्वच्छ पानी
से धोएँ; (म) टूटी बोतलों, डब्बों तथा टायर आदि में बरसात के पानी का जमाव न होने दें; (य) यदि घर के आस-पास के घास में पानी जमा हो सकता है तो उसे कटवा दें; (र) पानी के बर्तनों टैंकों, घड़ों आदि जिसमें पानी जमा करते हैं
उसे ढककर रखें; (ल) हर चार दिन के उपरान्त खुले पानी के बर्तनों को खाली कर दें।
यह मच्छर के अण्डे को पानी विकसित होने से रोकेगा; (व) नाक की गन्दगी और तम्बाकू चबाने के बाद उसका अपशिष्ट खुले में नहीं फ़ैलाना
चाहियें; और (स)
सार्वजनिक जगह पर सिगरेट नहीं पीनी चाहिए।
यदि हम स्वच्छता के नियम को ठीक तरह से पालन करते है तो शिशु मृत्यु दर जो अभी (वर्ष 2017) 34/1,000
को एकल अंक में ला सकतें हैं। साथ ही मातृ मृत्यु दर को भी ठोस
रूप से कम कर सकतें है, मातृ मृत्यु दर वर्ष 2015 में 174/100,000 थी। संधारणीय विकास
लक्ष्यों को प्राप्त करना एक चुनौती है, स्वच्छ
भारत संधारणीय विकास की लक्ष्य 6 यानी सभी के लिए स्वच्छता और पानी के सतत
प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करने में सहायक सिद्ध होगा। जब भारत स्वच्छ
होगा उसके फलस्वरूप वह संधारणीय विकास की लक्ष्य 3 (सभी आयु वर्ग के लोगों में
स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा) को भी स्वतः प्राप्त कर पायेगा। गाँधी जी कहते थे कि स्वच्छता देवत्व के समीप होती है और
उनका मानना था कि हम भगवान या परमेश्वर का आशीर्वाद नहीं प्राप्त कर सकते यदि शरीर
और मस्तिक अस्वच्छ है। एक स्वच्छ शरीर अस्वच्छ शहर में
नहीं रह सकता। गाँधी की यह बात उचित जान पड़ती है कि स्वस्थ रहने के मनुष्य को
स्वच्छता को अपनाना ही पड़ेगा। क्योकिं एक स्वस्थ शरीर में हीं स्वस्थ
मस्तिष्क का वास होता है और स्वस्थ मस्तिष्क ही समृद्ध भारत का निर्माण कर सकता है
और न्यू इंडिया की सपने को पूरा कर सकता है।
एक कहावत है कि “स्वच्छता, भक्ति
से भी बढ़कर है”। यह कथन जॉन वैस्ले
द्वारा बिल्कुल उचित कहा गया है। स्वच्छता उस अच्छी आदत की तरह है, जो न केवल एक व्यक्ति को लाभ पहुँचाती है, बल्कि, यह एक
परिवार, समाज और देश को भी लाभ पहुँचाती है। इसे किसी भी समय
में विकसित किया जा सकता है। स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, समृद्ध भारत।
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